ये जानते हुए भी की लिखने से कुछ नहीं होगा,
मैं लिखना चाहता हूँ...!
जलना ख़ाक होना हो शायद...
फिर भी मैं 'आग' लिखना चाहता हूँ.
इस सड़क पर बेमतलब चलता 'आदमी' लिखना चाहता हूँ.
अब रुकना यहाँ सड़ जाना होगा,
मैं 'नदी' लिखना चाहता हूँ.
गिरुं जैसे कोई 'झरना' गिरा हो,
मैं अब बह जाना चाहता हूँ.
बहुत चला हूँ सायादार पेड़ों में;
अब 'धूप' में थक जाना चाहता हूँ.
मैं 'माँ' लिखना चाहता हूँ.
मैं एक 'बच्चे' का हाँथ...
'औरत' का एक चेहरा उकेरना चाहता हूँ.
मैं अपना 'शहर' लिखना चाहता हूँ.
मैं अपना 'नाम' लिखना चाहता हूँ...
और इसे अपनी पूरी ताकत के साथ
तुझ पर फेंकना चाहता हूँ.
मैं तेरी बेबसी पर उधार के दो 'आंसू' चाहता हूँ.
एक बात कहूँ ?
मानोगे...???
अंत में मैं तेरी ही 'वि-जय' चाहता हूँ.
मैं 'सच' लिखना चाहता हूँ.
मैं अपने शब्दों में संवेदना की 'गूँज' चाहता हूँ.
ये जानते हुए भी की लिखने से कुछ नहीं होगा,
मैं लिखना चाहता हूँ...!
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
मैं कुछ लिखना चाहता हूँ...!!!
प्रस्तुतकर्ता मैं कहता आंखन देखि...!! पर बुधवार, अप्रैल 14, 2010
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1 टिप्पणियाँ:
bahut badhiya yara..tipical jai writting..ba likhana start kiya hai to chhodanat mat... achha likhte ho.
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